Father’s Day 2022: हर इंसान की जिंदगी में मां के साथ पिता की अहम भूमिका होती है। आज भी पिता की भूमिका को एक अनुशासन के रूप में और परिवार के पालनहारी के रूप में देखा जाता है। हालांकि ये बात सच है कि एक पिता कभी एक मां के रूप में अर्थपूर्ण नहीं हो सकते, लेकिन वो बराबर गर्मजोशी और स्नेह के साथ अपने बच्चों को प्यार करते हैं। जिससे बच्चे भी मां की ममता के साथ पिता की गोद में अपनी जिंदगी को संवारते हुए दिखते हैं।
सबसे खास बात तो ये है कि आज के दौर में बेटे और पिता और साथ ही बेटी और पिता के रिश्ते भी वक्त के साथ बदलते नहीं हैं, लेकिन उनका प्यार आज भी उतना ही मजबूत है। आज हम आपको बताएंगे कि हमारे शास्त्रों में पिता के लिए क्या कुछ कहा गया है। बेशक “फादर्स डे” (Father’s Day 2022) के मूल में पश्चिमी वर्जीनिया की एक दर्दनाक खान घटना जुडी हुई है, लेकिन भारत में अपने माता पिता और गुरु को सम्मान देने और उन्हें भगवान समान समझने के संस्कार और नैतिक दायित्व चिरकाल से चलते आ रहे हैं।
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“फादर्स डे” (Father’s Day) पर जाने पौराणिक कथाओं में “पिता का महत्व”
हिन्दी साहित्य में पिता को जनक, तात, पितृ, बाप, परस्वी, पितु, पालक, बप्पा आदि अनेक पर्यायवाची नामों से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य में श्रवण कुमार, अखंड ब्रह्मचारी, भीष्म, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम आदि अनेक आदर्श चरित्र प्रचुर मात्रा में मिलेंगे, जो एक पिता के प्रति पुत्र के अतः लगाव एवं समर्पण को सहज बयां करते हैं। वैदिक ग्रंथों में पिता के बारे में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित किया गया है कि “पांती रक्षति इति पिता” अर्थात जो रक्षा करता है, पिता कहलाता है।
यास्काचार्य प्रणीत निरुक्त के अनुसार “पिता पाता व पालित वापा”, पिता को पिता, अर्थात पालक, पोषक और रक्षक को पिता कहते हैं। महाभारत में पिता की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है, “पिता धर्मः पिता स्वर काः, पिता ही परम तपः, पितृ प्रतिमा पाणयः, सर्वाः परियंतिदेवता।” अर्थात, पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है, और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। इसके साथ ही कहा गया है “पितु हेम वचन कुर्वेना कस्यानां हियते।” अर्थात, पिता के वचन का पालन करने वाला दीन-हीन नहीं होता। (Father’s Day)
महाभारत में भी बताया गया है पिता को सबसे श्रेष्ठ
महाभारत के अनुसार भीष्म के पिता राजा शान्तनु थे। जब राजा शान्तनु निषाद कन्या सत्यवती पर मोहित हो गए, तब वो विवाह का प्रस्ताव लेकर उसके पिता के पास गए। सत्यवती के पिता ने राजा शान्तनु से वचन मांगा कि उनकी पुत्री से उत्पन्न संतान ही राजा बनेगी, लेकिन तब उन्होंने मना कर दिया। जब यह बात भीष्म को पता चली, तो वह सत्यवती के पिता के पास गए और वचन दिया कि वह आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और सत्यवती की संतान ही राजा बनेगी। इस तरह उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूरी की। (Father’s Day)
प्रसन्न होकर राजा शांतनु ने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया, तो वहीं अयोध्या के राजा दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र प्रभु श्रीराम से बहुत प्रेम करते थे। वह श्रीराम को राजा बनाना चाहते थे। लेकिन अपने वचन के कारण उन्हें न चाहकर भी राम को वनवास पर भेजना पड़ा। वनवास पर जाने से पहले उन्होंने भगवान श्रीराम से ये कहा कि “तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ.” श्रीराम के वनवास जाने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए। (Father’s Day)
रामायण में भी किया गया है पिता की ममता का बखान
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में पिता की सेवा करनी और उनकी आज्ञा का पालन करने के महत्व का उल्लेख करते हुए लिखा गया है, “नौ तो धरम चर्यण, किंचिदस्ति मह्त्र्म, यथा पितृ युक्सशाह, त्सेवा वचन कृपा.” अर्थात, पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है। हरिवंश पुराण के विष्णुपूर्व में पिता की महत्वता का बखान करते हुए कहा गया है, “दारूणीचा पिता पुत्र नैव दारुणताम रचयित, उत्तरार्द्ध फतह कस्टाः पितृाः प्राप्त वंतीह.” अर्थात, पुत्र क्रूर स्वभाव का हो जाए तो भी पिता उसके प्रति निष्ठुर नहीं हो सकता, क्योंकि पुत्रों के लिए पिताओं को कितने ही कष्ट दायिनी विपत्तियां झेलनी पड़ती हैं।
महाभारत में युधिष्ठिर ने यक्ष के एक सवाल के जवाब में आकाश से ऊंचा पिता को कहा है। और यक्ष ने उन्हें सही माना भी है। इसका अभिप्राय है कि पिता के ह्रदय आकाश में अपने पुत्रों के लिए असीम प्यार होता है। वह अवर्णनीय है। इसीलिए हमारे शास्त्रों में भी पिता को सर्वोपरि माना गया है। वक्त बदलेगा, हालात बदलेंगे, मगर माता पिता का ये स्थान हमेशा ऐसे ही रहेगा। (Father’s Day)
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